gps kya hai kaise kaam karta hai
intro:-
इसकी फुल फॉर्म Global Positioning System आजकल आपको ये तो पता है । की हर कोई नेविगेशन की बात करता है और जब भी हमे कही जाने का रास्ता नहीं मिलता है । तो हम सबसे पहले गूगल मैप का इस्तिमाल करते है जिससे हमे सही रास्ता तो मिलता ही है साथ मे रस्ते में जितनी भी ट्रेफिक है उसके बारे मे भी पता चल जाता है तो आज हम आपको विस्तार से बतायेगे की gps kya hai kaise kaam karta hai और इसके मुख्या पार्ट क्या क्या है । जीपीएस पॉसिबल सिर्फ सेटेलाइट की वजह से संभव हो पता है । जी की समुंदर तल से 18 किलोमीटर ऊपर स्थित है जो की एक निश्चित स्पीड से धरती का चाकर लगते है इनको 1 चक्कर पूरा करने मे 12 घंटे तक लग जाते है जो की बोहत सटीक होता है इनकी गति मे 1 सेकंड का भी अंतर नहीं होता और ये आज के टाइम मे संख्या मे 24 है पर ये एक टाइम मे 3 ही काम करते है । और इसका मुख्या कार्यविधि त्रिभुज ट्रैकिंग होती है जो एक साथ 3 सेटेलाइट मिलकर 120 डिग्री के एंगल पर होते है और सही पोजीशन का पता लगते है ।
principal of gps-जीपीएस की कार्यविधि :-
जीपीएस के काम करने का ढंग समझने मे तो बोहत आसान है लेकिन इसको उस समय पूरा करना बोहत ही मुश्किल था . इसमें हमारे विज्ञानिको को काफी टीम तक निराशा भी हाथ लगी लेकिन अब सब सामन्य है क्युकी इनकी कार्य प्रणाली पूरी तरह से सेटेलाइट पर ही निर्भर करती है । और इसमें सबसे खर्चीला काम सेटेलाइट को पृथवी की कक्षा मे स्थापित करवाना होता है ।
वर्किंग

ट्राइंगल फंडामेंटल के अनुसार हम धरती के हर क्षेत्र मे सभी चीज को आसानी से खोज सकते है इसमें मुख्यता 3 सेटेलाइट काम मे लिए जाते है जैसा की फोटो मे दिखाया गया है और ये किसी भी नेविगेशन का मुख्या फंडामेंटल होता है । इसके साथ हमारे मोबाइल मे जीपीएस रिसीवर होता है जो की लोकेशन ऑन करने पर स्टेलाइट के साथ जुड़ जाता है । और ये सबसे पहले 1 सेटेलाइट से जुड़ता है और 1 सेटेलाइट का रेडियस 40 किलोमीटर होता है यानि की वो गति पर आपकी लोकेशन सिर्फ 80 किलोमीटर के दायरे मे ही बता सकता है यानि की यहाँ हमे उतनी अकुरसी नहीं मिलती है । क्योकि ये एरिया बोहत बड़ा हो

जाता है और आप 80 किलोमीटर मे कही भी हो सकते हो । इसके बाद इसमें दूसरा स्टेलिते कनेक्ट होता है । जैसे ही दूसरा सेटेलाइट के द्वारा रेडियस काटता है वैसे ही हमें 2 सटीक पॉइंट मिल जाते है जैसा की फोटो मे दिखया गया है । इसे और सटीक करने के लिए हमें 1 और सेटेलाइट की जरुरत पड़ती है जो की हमें 100% करेक्ट लोकेशन प्रोवाइड करता है । और और अगर इसमें विपरीत घूमने वाला 1 सैटेलाइट और कनेक्ट कर दिया जाये तो ये हमारी जगह की ऊंचाई भी बता सकता है की हम समुंदर तल से कितनी ऊंचाई पर है । और इससे हमारे लैंड का लेवल भी आसानी से हो पायेगा जो की सब कार्य को काफी आसान बना देता है । एनिमेटेड वीडियो के माध्यम से नेविगेशन सिस्टम को समझने के लिए यहाँ क्लिक करे । ।
एक बेहतर जीपीएस :-
एक बेहतर जीपीएस के लिए लिए जरुरी फैक्टर हमरे रिसीवर का टाइम भी होता है । अगर हमरे मोबाइल का टाइम 1 माइक्रो सेकंड का एरर देता है तो जीपीएस इसे 10 किलोमीटर का एरर शो करेगा । अब आपके दीमक मे आ रहा होगा की 1 माइक्रो सेकंड क्या मेरा फोन तो 5 मिनेट आगे या पीछे हो सकता है तो आपको बता दे की ये बात हमारे इंजीनियर बखूबी जानते है थे इस वजह से उन्होंने 1 सेटेलाइट को सिर्फ हमारे मोबाइल के रसिवार का टाइम ठीक करने के लिए रखा गया है जो की अब संख्या मे चार हो जाते है । और हमें हमारी लोकेशन का सही पता लगाने मे सखम हो पते है ।
आइंस्टाइन दा थेओरी ऑफ़ रिलेटिविटी :-
यहाँ पर सेटेलाइट मे एक और सबसे बड़ी प्रॉब्लम है वो ये की जब भी कोई वास्तु काफी स्पीड मे एर्थ या किसी भी ग्रेविटी के संपर्क मे घूमती है तो वह टाइम धीमा हो जाता है तो ऐसा ही एरर हमारे सेटेलाइट मे भी देखने को मिल रहा था । जीसके कारण उनका टाइम मे 10 मिक्रोसेकन्ड का एरर देखने को मिलता जिसे हम e=mc2 जान सकते है । इसका समाधान हमें इलक्ट्रोनिक कार्ड्स की वजह से मिला है इनके टाइमर मे 24 घंटे मे 10 माइक्रो सेकंड जुड़ जाते है । जिससे टाइम फिर से सही हो जाता है । और हमें एक बेहतर जीपीएस टेक्नोलॉजी मिल पति है ।
conclusion :-
एकटुक बात करे तो जीपीएस टेक्नोलॉजी अमेरिका दुवरा छोड़े गए 24 सेटेलाईट इस काम को अंजाम देते है इसमें चार सेटेलाइट काम में आते है जिनमे से 3 का काम हमारे मोबाइल के रिसीवर से सेटेलाइट की दुरी को मैसर करके लोकेशन का पता लगाना जो की सेटेलाइट 1 मैथमेटिकल फार्मूले से बखूबी पता लगा लेते है । तथा चौथा सेटेलाइट हमारे मोबाइल के रिसीवर का टाइम ठीक करता है । जिससे लाइट स्पीड से ट्रेवल वेव का सही से आंकलन किया जाता है । और हमारी लोकेशन सही से दिख पाती है ।
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FAQ :-